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ملحوظات عن القصيدة:
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| تراتيل قلبي تُساقُ |
| مع الأغنياتالكئيبةْ. |
| مواسم عشقيتُقيم المآتم ْ |
| وأعراسُ حزني تُزغْردُ |
| عند ضفاف المقابرِ |
| تلك الجفون رصيفٌ مليءٌ |
| بهمس الطّفولةْ .. |
| تُدوِّنُ وقع خطاهمْ |
| وتلثم ريح الخيامِ وذكرى حبيبه . |
| *** |
| أتيتُكِ نسراً وديعاً أضاع الجناح َ |
| وباع السماء َ |
| أتيتُكِ ومضاً بدون سحاب |
| وأرضاًتُنقِّبُ عمّن ْيردُّ التّرابْ .. |
| إليكِ يُغرّدُ دمعيكنسمةِ صيفٍ |
| جفتْها الوعودْ.. |
| سبتْها المجازرُ عند الحدودْ . |
| ألا ليتَ عينيتُزيح المخاوفَ |
| تزرع دربَ الخلاص حناناً وجمرا .. |
| متىنحتفي بالبشائرْ؟؟ |
| أيبقىالنواحُ صديقي؟ |
| أأَنتِ الزّمانُ يُضيّقُدربي |
| ويبعثُ فيهالحرائقْ؟؟ |
| لمنْ أسكبُ البوحَ بعد الرحيلْ؟ |
| لمن أرسلُ الشوقَ والمُسْتحيلْ؟؟ |
| ألستِ ا لتي في عيوني تنامُ؟ |
| وتهربُ خوفَ اللّئام .. |
| أَأَنتِ التي خاطبتْ أُغنياتُكِ |
| عُمري المُهانْ؟؟ |
| فألبسْتِهِفرحةَ الفجرِ |
| طوّقْتِهِياسميناًورغمَ الأماني |
| خسرْتُ الرّهانْ .. |
| أتيتِ تبثّينَنشوةََ َ شِعري |
| لذاكَ الشّغافِ اليبابْ . |
| *** |
| تراتيلُ تسبحُ عكسَ القصائدِ |
| عكسَ الموائدِ |
| تصرخ ملْءَ الحناجرْ.. |
| أجوعُإليكِليومٍ |
| وأظمأُ دهراً |
| لأنّكِ بعتِ المناهلَ |
| أوقفْتِ دفْقَ الجداولِ ْ. |
| أتسمحُ عيناكِ عنّي |
| إذاما مضيْتُبعيداً |
| كأيِّمسافرْ..؟؟ |
| أتسمحُعنّي المآذنُ يوماً |
| إذاما رهنْتُ ألإمامَ |
| وبعتُ القبابَ |
| ونورَ المنابرْ؟؟ |