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ملحوظات عن القصيدة:
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| بعيدا عن الحبِّ نحكي |
| ونمشي وراء الحكايا المخيفةْ. |
| قليلٌ من الخوف يبقى |
| قبيل اللقاءِ.. |
| بعيدا عن القلب نمضي |
| ونسلك درباً مريبةْ.. |
| قليلا من الحبِّ نرضى |
| ليردمَ بوحَ الجفاءِ. |
| أهذا الذي تدَّعينَ |
| يداوي الفؤادْ؟ |
| بعيداً عن الحبِّ |
| نسبح نغرقُ |
| والشعر يسرق |
| منَّا الرقادْ.. |
| قليلا من الهمسِ أرضى |
| بعيدا أغنيِّ |
| قريبا من القلب تبقينَ |
| رغم انتهاءِ الحصادْ |
| *** |
| قليلا من الحبِّ بحثا |
| وراءَ المحال .. |
| أأعبرُ نحَوكِ كلَّ المواني؟ |
| وأسكن هدب العيونِ |
| وقلبَ الحرائقْ.. |
| أأكسرُ صخراً |
| لأبحثَ عنكِ؟ |
| أأعصرُ جمراً |
| وأنتِ تقيمينَ |
| بين الرغيف |
| وبين الدفاترْ |
| لمن أسكب البوحَ والشعرَ |
| إن غبتُ يوماً |
| وغرَّدْتُ عشقاً |
| امام الرصيفِ المسافرْ؟.. |
| بعيداً اليكِ اطَيرُ، |
| قريبا إليك اسير، |
| ولكن سرقتِ النجومَ |
| وأغلقْتِ باب المشاعرْ. |
| فآهٍ لآني فقدتُ الرفيق الذي |
| عاشَ بين العيون |
| وحلَّق قبل البشائرْ.. |
| *** |
| فهلْ تغلقينَ النوافذَ |
| قبل الوداع..؟ |
| أترمين فوق جراحي رماداً؟ |
| أقيم طويلا أمام المواقدْ.. |
| رأيتُ السبيل اليك |
| عصيَّ المسالكْ |
| كأني رهنتُ ثيابي |
| لغير الحبيبْ. |
| ورحتُ انادي السرابَ |
| كطفل غريبْ. |
| ودوني ودون الحبيبِ |
| هجير الحروفِ |
| ولسعُ الحروبْ.. |