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ملحوظات عن القصيدة:
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| في أرضي |
| الصمت مرير كالبغض |
| والفجر يجيء بلا ومض |
| والليل يمر |
| ولا يمضي |
| والناس تتمتم في أرضي |
| كنا |
| اثنين |
| عينان تغوران بعينين |
| منتظرين |
| الفجر الفضي |
| والفجر يجيء بلا ومض |
| في أرضي |
| وسئمنا الركض مع الأحلام |
| كرهنا الناس |
| فقدنا الإحساس |
| مللنا |
| متنا |
| وإذا عشنا |
| فلقطرة سكر في جام |
| تنسينا |
| سود ليالينا |
| تنسينا |
| سجانا |
| وسجينا |
| وأنينا في أرض الصبار حزينا |
| كنا اثنين |
| عينان تمران بعينين |
| وبلا حب |
| وبلا بغض |
| وكبعض الناس نمر ببعض |
| والناس |
| تتمتم في أرضي |
| في بيتي |
| كنا اثنين |
| وبصمت |
| التقت كفان بكفين |
| أستمضي ؟ |
| لن أبقى لن أبقى |
| وهمست بصوت مبلول |
| سأظل لأشقى لن أمضي |
| وبحبي |
| وببغضي |
| سأحيل حقولي |
| فجرا ينساب على أرضي |
| واليوم |
| أعود |
| أرضي تمتد بدون حدود |
| بيتي رابية |
| كتفاه ورود |
| دنياه خلود |
| دربي |
| كحديث اثنين عن الحب |
| عن لهفة قلب |
| عن لفتة وجود |
| تخضر وتزهر في جنبيه وعود |
| وبصمت |
| التقت كفان بكفين |
| غرقت عينان بعينين |
| وهمست بصوت مبلول |
| أطبق جفنيك |
| لنغرق في الفجر الفضي |
| ما أعمق |
| ما أطيب |
| ما أوسعها أرضي |
| تلك الأكبر من حبي |
| تلك الأكبر من كل سني الغربة |
| والظلمة |
| والرعب |
| والأكبر من عفوك يا بغضي |