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ملحوظات عن القصيدة:
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| والتقينا |
| كان ود بارد بين يدينا |
| ان شيء مضحك في ناظريك |
| قلت في همس: |
| تغيرت |
| وأنت |
| وتلفت لنفسي |
| وتألمت لأمسي |
| أترى جار علينا ..؟ |
| أترانا |
| قد أضلتنا خطانا فانتهينا |
| بعض أفكار حزينة |
| بعض حقد وضغينة |
| ورموزا لمدينة |
| لم تشيدها قرانا |
| أترانا |
| قد أضلتنا خطانا فالتقينا |
| في دروب لم يسر فيها صبانا |
| وافترقنا |
| وافترقنا |
| والتقينا |
| كان حس ليس منا في يدينا |
| كان شيء مؤلم في ناظرينا |
| كان صمت |
| وحديث خلف صمتنا بعيد |
| كان للعالم عمر |
| وحدود |
| قلت في همس |
| لنفسي: |
| هذه ليست قرانا |
| هذه ليست دنانا |
| إنها تجهل أمسي |
| وتلمست بصوتي |
| وحشتني |
| موتى المهانا |
| أترانا |
| قد أضلتنا خطانا |
| فالتقينا |
| وافترقنا |
| وافترقنا |
| ثم عدنا فالتقينا |
| كان صمت بيننا يسخر منا |
| كان ود ميت بين يدينا |
| لم نقل أنا |
| ولكنا .. |
| انتهينا |
| وافترقنا |
| أنا لا إذ |
| نحن لا نذكر أن كنا التقينا |
| وافترقنا |