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ملحوظات عن القصيدة:
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| .. وما طاوعتني القصيدةُ |
| كان الوطنْ |
| على الساترِ المتقدّمِ... |
| .. يحصي شظاياهُ والشهداءَ |
| وصحبي يعدّون للمدفعيةِ بعضَ الفطارِ المقيتِ |
| وينتظرون لمائدةِ الحربِ، أن تنتهي.. |
| سقطتْ خوذةٌ.. |
| فتلمّستُ في رئتي موضعَ الثقبِ منها |
| امتلأتْ راحتي بالرمادْ |
| سقطتْ خوذةٌ |
| فتلمّستُ في وطني موضعَ الثقبِ منه |
| شرِقنا معاً بالدمِ المتدفّقِ |
| مَنْ يوقفُ الدمَ.. |
| مَنْ..؟ |
| سقطتْ خوذةٌ.. |
| ثم أخرى |
| وأخرى.. |
| وأخرى |
| نظرتُ لموتي المؤجّلِ.. يرمقني ببرودٍ |
| ويخلعُ خوذتَهُ.. |
| وينامْ |
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