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ملحوظات عن القصيدة:
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| حمَلَ النَّدى |
| منْ جَوفِ فجرٍ |
| ثمَّ غابَ |
| معَ الرِّياحْ |
| أيمُرُّ |
| منْ ثقبِ الضَّجرْ؟ |
| لا يَرتَميْ |
| في حُضنِ أغنيةٍ |
| وَ لا ينسَى البكاءْ |
| منْ كانَ يبحثُ |
| عنْ سماءْ |
| حطَّتْ |
| عصافِيري |
| عَلى خطِّ المَدى |
| تمتَدُّ |
| مثلَ عيونِهِ |
| الحبلى |
| بمجذافِ الرَّحيلْ |
| ما بينَ جنبيهِ |
| الدُّموعُ تفيضُ |
| مثلَ الحُزنِ |
| تسكنُ في |
| مساماتِ الوداعْ |
| الشَّمسُ تسألُ |
| ظلَّ |
| موكبهِ المَهيبْ |
| أينَ اتِّجاهُكَ |
| في مغاراتِ الغيابْ؟ |
| قالَ: الضَّياعُ يمرُّ |
| منْ كلِّ الجهاتْ |
| وَ بلا زوايَا النَّهرِ |
| نرسمُ جوفَ |
| دائرةِ الفراغْ |
| وَ الماءُ خطٌّ مائلٌ |
| في المُستحيلْ |
| أفلا يَخُرُّ اللَّيلُ |
| يركبُ غفوتيْ |
| وَ السُّهدُ يمشيْ |
| في شرايينِ السَّفرْ |
| نجماتُ |
| ذاكَ الحيِّ |
| تَتْبعُني |
| وَ يَتْبَعُنيْ القَدرْ |
| وَ يدَاكَ |
| تمتَدَّانِ في صدريْ |
| فَترتجفُ الشِّفاهْ |
| يَا مِعْطفيْ |
| بلِّلْ مسامَ الرّوحِ |
| منْ ومضِ الحنينْ |
| إنَّ المسافاتِ |
| البعيدةَ تقتربْ |
| وَ العمرُ |
| في عُرفِ المَواتِ |
| هو القتيلْ |
| أَهوَ الزَّمانُ |
| امْتدَّ في |
| نَهرِ التذكُّرِ |
| وَ ارتَمَى حجرًا |
| يُحرِّكُ |
| نزفَ |
| أغصانِ الشَّتاتْ |
| أيُبدِّلُ الموتُ الحياةْ؟ |
| منْ يَقتَفيْ |
| أثَرَ الطريقِ |
| منَ الغريقْ؟!! |
| ضِدَّانِ منْ نزَقي |
| يمينٌ أو شمالْ |
| هذا الجنوبُ |
| على خُطايْ |
| وَ الأرضُ تهربُ |
| منْ سمايْ |
| وَ الشَّرقُ عنْ |
| غربٍ يميلْ |
| شَربَ النَّدى، |
| ظمآنُ |
| منْ عرقِ الصَّدى |
| وَ على رمالِ الدَّهرِ |
| شطٌّ منْ ردَى |
| ركبَ السفينَةَ |
| فوقَ موجِ الحلمِ |
| يبحثُ عنْ شراعْ |
| خلعَ |
| النياشينَ التي |
| تعبتْ |
| منَ العبثِ المخبَّأِ |
| في بيوتِ العنكبوتْ |
| يا بحرُ أرشدني |
| بخوفكَ |
| كيفَ تَنحسرُ |
| الثَّواني وَ الدُّموعْ |
| عُذْرُ المُهَاجرِ |
| أنْ يمُرَّ |
| كظلِّ خيطٍ |
| لا نراهْ |
| جفَّ النَّدى |
| فيْ فجرِ صمتِكَ |
| يا صهيلْ |