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بنيّتي آمالْ |
في عامها الأول |
كالحديقة التي بها |
أنفاس عمري |
تقطف الصفاء والجمالْ |
جاءت إلى الدنيا |
كأنني أنا الذي ولدتُ |
من جديدٍ |
وكأنني أنا |
من يبدأ العمر بها |
ويسكن الخيالْ |
تبْسم |
في وجهي |
فأملك الدنى |
أحس أني نلتُ |
ما ليس ينالْ |
بنيّتي كنزي |
وأجمل الهدايا |
من إلهي |
وأنا بها |
أباهي رحلتي |
وأخرس الزوالْ |
يا بهجة العمر |
أنا هنا |
تعالي لا تخافي |
كي تعيشي معنا |
في ظل أسرةٍ |
بها أجمل طفلةٍ |
تشدّ أعين الأجيالْ |
بنيتي قلبي |
وعقلي |
إنها أميرة الروح |
ووجهها يغذي نشوتي |
بروعة الحياة |
فالحياة لم تكن حياة قبلها |
بنيتي آمالْ |
تمشي |
تتعثر الخطى |
تبكي |
أشيلها |
كأنني أشيل نبضي |
وألاعب الحياة عندما |
تلعب في مكتبتي |
بكتبٍ كانوا أمام عبثها |
جميعهم أبطالْ |
يا ليتني |
أرجع طفلاً |
أبيض الصفحة |
لا أشكو |
من الدنيا |
ولا من قسوة الأحوالْ |
بنيتي |
كم تثلج الصدر |
تخفف الأسى عني |
إذا أبصرتها |
أنسى عنائي |
وأغادر الملالْ |
أبقاك ربي |
يا بنيتي |
من السرور تغرفين |
لا ذقت الذي |
يُخسرك الكمالْ |